Atmavijnanam – आत्मविज्ञानम्

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ISBN: 81-85246-37-8
Author: Dr. K. D. Dvivedi
Language: संस्कृत
Year of Publication: 1995
Binding Type: Hard-Bound
Bibliography: Pages 195+8
Size: Demy i.e. 22.5X14.5 CM

Detail in English :

This is a Sanskrit Poetry book. It is a Mahakavya, divided into 20 chapters. It contains about two thousand Shlokas on the philosophy of Yoga. Here all the eight parts of Yoga are dealt with:They include Asan, Pranayam, Introspection, Concentration, Meditation and Self-realization. It also deals with anotomy and physiology of human being. The awakening of Kundalini is also discussed in details.

विवरण हिन्दी में :

यह संस्कृत भाषा में लिखा गया महाकाव्य है । यह २० सर्गों में विभाजित है तथा इसमें लगभग दो हजार श्लोक हैं । यह योगविषयक अत्यन्त प्रामाणिक ग्रन्थ है। इसकी भाषा सरल और सुबोध है। इसमें योग-साधना और ब्रह्मसाक्षात्कार से संबद्ध सभी सामग्री दी गई है।
प्रथम ५ सर्गों में अन्नमयकोश का वर्णन है । इसमें शरीर के सभी अंगों-प्रत्यंगों, हृदय, ग्रन्थियों, रक्तोत्पत्ति, मस्तिष्क,इडा पिंगला सुषुम्णा के कार्य, कुण्डलिनी-जागरण आदि का वर्णन है । २ सर्गों में प्राणमयकोश का वर्णन है । प्राणों के कार्य, प्राणायाम की योग में उपयोगिता आदि का वर्णन है । ५ सर्गे में मनोमय कोश का वर्णन है । इसमें मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार वृत्तियों आदि का सूक्ष्म वर्णन है । ४ सर्गों में विज्ञानमयकोश का वर्णन है । इपमें प्रत्याहार धारणा और ध्यान का वर्णन है । साथ ही सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर के दर्शन की प्रक्रिया भी दी गई है । अन्तिम ४ सर्गों में आनन्दमयकोश का वर्णन है । इसमें ब्रह्मसाक्षात्कार, जीवन्मुक्ति और मोक्ष के स्वरूप आदि का वर्णन है।

author-name

Dr. K. D. Dvivedi

bibliography

195+8 Pages, Size Demy i.e. 22.5X14.5 CM

binding-type

Hard-Bound

language

Sanskrit

year-of-publication

1995

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